आप भी छोड़िये... मगर खाली नहीं

Wednesday, 29 December 2010

माँ की रसोई

टूटी प्यालियाँ
चटकी थालियाँ
मिटटी का चूल्हा
और माँ की रसोई

अंगारों में झुलसी
काली अंगुलियाँ,
छाती से लिपटी
छोटी बहनिया
सावन के झूलों सी
घुटने की थपकियाँ
सिलबट्टे का नमक
करारी रोटियां
और माँ की रसोई

गोबर से लेपि
चारों दिवारिया
चुने से पोती
ईंटों की क्यारियां
गेंदे की फुलवारी
आंगन घिसती माँ
और पीठ की सवारी
घिसी हथेलियाँ
फटी एड़ियाँ
और माँ की रसोई

पुराने काले संदूक की
हजारों पहेलियाँ
जंगल के बाघों की
दसियों कहानियां
गोदी का बिस्तर
महकता आँचल
गंधैली रजाईयां .....
और माँ की रसोई

Friday, 22 October 2010

राज़

हम राज़ छुपाए बैठे है
वो घात लगाए बैठे है
उम्मीद मे दोनो की दम है
हम शमा बुझाए बैठे है
वो आग लगाए बैठे है...

उस तंत्र के देखो चर्चे है
चौखट पर नींबू मिर्चे है
चौराहे पर जलते दिए देखो
खुशियों के कितने खर्चे है
हर ओझा हार गया देखो
कैसी हाय लगाए बैठे है

हम राज़ छुपाए बैठे है
वो घात लगाए बैठे है

Tuesday, 13 July 2010

लो हम भी आ गये...

टच पैड को बार बार रौंदा नहीं जा रहा था...लिहाज़ा चूहे को पकड़ के धरती पे ऐसा रगडा की वो अपनी पैदाइश पे रो रहा होगा...खैर ...लीजिये हम भी आ गए...लेकिन मेहनत बहुत की... क्या क्या प्रपंच नहीं किये...ये फोटो नहीं ...वो फोटो नहीं...ये टाईटिल नहीं वो टाईटिल नहीं... पूरी जिंदगी की पढाई का निचोड़ निकाल के जो टाईटिल दिमाग में आया कम्बखत वो किसी और ने पहले ही टांग दिया था...छत्तीस बार दिमाग ख़राब...उधार के पैसों के लैपटॉप को ऐसा अधमरा कर दिया जैसे ..'भारत टीवी' वाले..' भीड़ का इन्साफ'... दिखाते हैं....और कई बार झल्ला के नए नए तकियाकलाम ईजाद किये (जिन्हें बेवक़ूफ़ लोग गालियां कहते हैं)...खैर चलिए साब बन गया ....ब्लॉग...हालाँकि मेरे घरभाई (रूममेट) को बैकग्राउंड अभी भी पसंद नहीं आया...