आप भी छोड़िये... मगर खाली नहीं

Wednesday, 12 October 2011

अन्ना का पंखा


पुरानी टेबल के ऊपर कुर्सी ...
कुर्सी के ऊपर डब्बा ...
डब्बे के ऊपर एक और डब्बा ...
उसके ऊपर अन्ना ...
नीचे टेबल के एक पैर को केजरी ने
एक को किरण ने ..
एक को मनीष ने
और एक को प्रशांत ने थामा है..
केजरी गये हिसार
किरण गयी..पता नही कहाँ
मनीष गये दूसरा काम पकड़ने
और प्रशांत उंघते उंघते कश्मीर पहुँच गए...
हालाँकि उनको जगाने की कोशिश की गयी है...
लेकिन अन्ना के बूढ़े हाथ
लोकपाल का पंखा कैसे टांगेंगे...
ये अग्निवेश जी क्यूँ हंस रहे हैं...रामदेव जी आप भी....

Sunday, 10 April 2011

रोटी मिल गयी

खुश रहो सरकार
रोटी मिल गयी
आधी खाई आधी सिहाने रख दी
रोटी मिल गयी
कुत्ते भी भूखे हम भी भूखे
हम एक थे वो चार
झपट वो भी झपटे हम भी
रोटी मिल गयी
अब चाँद भी दिखा ईद भी मानेगी
रोटी मिल गयी
ओह राम भी गए याद
रोटी मिल गयी
खुश रहो सरकार रोटी मिल गयी...

Thursday, 6 January 2011

चीथड़े...

शाख पर बैठा एक परिंदा, अपनो की परवरिश का जिम्मा कंधों पर लिए, चारे की तलाश में सिर हिलाता, यहाँ से वहाँ फुदक कर जिंदगी और मौत के बीच दूरी कायम रखने की कोशिश करता, मन में अपनो की तस्वीर और अपने अनिश्चित भाग्य से बेख़बर बस आज में जीता, अपनो का सहारा, शायद एकलौता सहारा, अपनों की भूख और बेचैनी से अच्छी तरह वाकिफ़, इस डाल से उस डाल, उस डाल से इस डाल,..रोज़ जिंदगी तलाशता....और फिर .....एक सन्नाटा ...मौत से पहले का सन्नाटा ....और अचानक एक चीख....एक चीख जिसने आस पास की खामोश हवाओं का भी दिल दहला दिया..पत्ते दहशत से काँपने लगे, टहनियाँ बेलगाम भीड़ की तरह इधर से उधर डोलने लगीं...सुस्त खड़े रहने वाले दरख़्त भी मौत का ये तांडव देख कर जड़ तक हिल गये..आस पास खड़ी सारी कायनात मानो तमाशबीन की तरह सब कुछ होते देख रही हो...नगी आँखों से ..सब कुछ...और फिर...धीरे धीरे छटपटाती जिंदगी, लाहुलुहान जिंदगी, भारी भारी साँसे...फड़फड़ाती आँखों में धुँधलाती हुई कुछ तस्वीरे...शायद किसी बच्चे की..और अंत में जिंदगी का आत्मसमर्पण ....सोचने का मौका भी नही मिला की आख़िर ये सब हुआ क्या...
आसपास के तमाशबीनो की जब आँख खुली तो देखा गाड़ी के कुछ पुर्ज़े...आधी अधूरी, पिचकी हुई , फटी हुई लाशें ..सामान...और खून के छींटे ...गर्म छींटे....
कुछ अपने ही जिस्म से अलग होते चीथड़ो को कुछ देर तक महसूस भी करते रहे ...और फिर मर गये....और कुछ अभागे अभी भी जिंदा है...जिंदगी भर मरने के लिए...
घर मे माँ पागला सी गयी है...बाप मोहल्ले की परचून वाले के यहाँ से पत्ती और बिस्कुट लेने गया है...उधार....
मंत्री जी आ रहें है...साथ मे कलेक्टर भी है ..घर मे कोई रो नही रहा.... इसलिए प्रेस वाले परेशान हैं ....मंत्री ने गैस का बहाना बना के चाय के लिए मना कर दिया ...रे बैन पहने...मीडीया की तरफ देखते हुए...कलेक्टर ने कुछ सामान निकाला और पूछा ये आपके बेटे का ही था ना...बाप ने काँपते हाथों से जैसे सामान हाथों मे लिया...फफक कर रो पड़ा ...पीछे से धीरे धीरे पूरा घर छाती पीटने लगा....पगली माँ भी....पत्रकारों ने तुरंत मोर्चा संभाल लिया....चमचमाते फ्लैशों के बीच ...बाप ने संभलते हुए पर्स देखा ...चाँदी की अंगूठी देखी जिस पर नग चड़ा हुआ था..थोड़ा याद किया ...ये वही अंगूठी थी जिसे पंडित ने भाग्य बढ़ाने के लिए पहनाया था...फिर याद आया इसके तो पैसे भी सुनार को अब तक नही दिए...तभी मंत्री जी का फोन बज गया...मुन्नी बदनाम रिंग टोन के साथ......फोन को कान पर सटा कर बेशर्मी से मंत्री ने परिवार को अलविदा कहा...फिर याद आया फोटो तो खिंचवाया ही नहीं...वो भी कर लिया..और फिर कोलेक्टर पीछे पीछे ....कान पर कोई बता गया मुआवज़े के लिए अगले हफ्ते दफ़्तर आ जाना ....जाते जाते कोई कह रहा था...एक महीने से पहले काम नहीं होगा ...क्यों..अरे राज्योत्सव चल रहा है यार...उत्तराखंड दस साल का हो गया ना....

Wednesday, 5 January 2011

मैं पत्रकार बनना चाहता हूँ...

"बरखा ने कॉंग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी से बयान दिला दिया है जिसमें द्रमुक नेता टी आर बालू को की मीडीया की गयी कुछ टिप्पणियों की सफाई है..."
नीरा रादिया - राजा के सहयोगी आर के चंदोलिया से फोन पर....

Wednesday, 29 December 2010

माँ की रसोई

टूटी प्यालियाँ
चटकी थालियाँ
मिटटी का चूल्हा
और माँ की रसोई

अंगारों में झुलसी
काली अंगुलियाँ,
छाती से लिपटी
छोटी बहनिया
सावन के झूलों सी
घुटने की थपकियाँ
सिलबट्टे का नमक
करारी रोटियां
और माँ की रसोई

गोबर से लेपि
चारों दिवारिया
चुने से पोती
ईंटों की क्यारियां
गेंदे की फुलवारी
आंगन घिसती माँ
और पीठ की सवारी
घिसी हथेलियाँ
फटी एड़ियाँ
और माँ की रसोई

पुराने काले संदूक की
हजारों पहेलियाँ
जंगल के बाघों की
दसियों कहानियां
गोदी का बिस्तर
महकता आँचल
गंधैली रजाईयां .....
और माँ की रसोई

Friday, 22 October 2010

राज़

हम राज़ छुपाए बैठे है
वो घात लगाए बैठे है
उम्मीद मे दोनो की दम है
हम शमा बुझाए बैठे है
वो आग लगाए बैठे है...

उस तंत्र के देखो चर्चे है
चौखट पर नींबू मिर्चे है
चौराहे पर जलते दिए देखो
खुशियों के कितने खर्चे है
हर ओझा हार गया देखो
कैसी हाय लगाए बैठे है

हम राज़ छुपाए बैठे है
वो घात लगाए बैठे है

Tuesday, 13 July 2010

लो हम भी आ गये...

टच पैड को बार बार रौंदा नहीं जा रहा था...लिहाज़ा चूहे को पकड़ के धरती पे ऐसा रगडा की वो अपनी पैदाइश पे रो रहा होगा...खैर ...लीजिये हम भी आ गए...लेकिन मेहनत बहुत की... क्या क्या प्रपंच नहीं किये...ये फोटो नहीं ...वो फोटो नहीं...ये टाईटिल नहीं वो टाईटिल नहीं... पूरी जिंदगी की पढाई का निचोड़ निकाल के जो टाईटिल दिमाग में आया कम्बखत वो किसी और ने पहले ही टांग दिया था...छत्तीस बार दिमाग ख़राब...उधार के पैसों के लैपटॉप को ऐसा अधमरा कर दिया जैसे ..'भारत टीवी' वाले..' भीड़ का इन्साफ'... दिखाते हैं....और कई बार झल्ला के नए नए तकियाकलाम ईजाद किये (जिन्हें बेवक़ूफ़ लोग गालियां कहते हैं)...खैर चलिए साब बन गया ....ब्लॉग...हालाँकि मेरे घरभाई (रूममेट) को बैकग्राउंड अभी भी पसंद नहीं आया...