शाख पर बैठा एक परिंदा, अपनो की परवरिश का जिम्मा कंधों पर लिए, चारे की तलाश में सिर हिलाता, यहाँ से वहाँ फुदक कर जिंदगी और मौत के बीच दूरी कायम रखने की कोशिश करता, मन में अपनो की तस्वीर और अपने अनिश्चित भाग्य से बेख़बर बस आज में जीता, अपनो का सहारा, शायद एकलौता सहारा, अपनों की भूख और बेचैनी से अच्छी तरह वाकिफ़, इस डाल से उस डाल, उस डाल से इस डाल,..रोज़ जिंदगी तलाशता....और फिर .....एक सन्नाटा ...मौत से पहले का सन्नाटा ....और अचानक एक चीख....एक चीख जिसने आस पास की खामोश हवाओं का भी दिल दहला दिया..पत्ते दहशत से काँपने लगे, टहनियाँ बेलगाम भीड़ की तरह इधर से उधर डोलने लगीं...सुस्त खड़े रहने वाले दरख़्त भी मौत का ये तांडव देख कर जड़ तक हिल गये..आस पास खड़ी सारी कायनात मानो तमाशबीन की तरह सब कुछ होते देख रही हो...नगी आँखों से ..सब कुछ...और फिर...धीरे धीरे छटपटाती जिंदगी, लाहुलुहान जिंदगी, भारी भारी साँसे...फड़फड़ाती आँखों में धुँधलाती हुई कुछ तस्वीरे...शायद किसी बच्चे की..और अंत में जिंदगी का आत्मसमर्पण ....सोचने का मौका भी नही मिला की आख़िर ये सब हुआ क्या...
आसपास के तमाशबीनो की जब आँख खुली तो देखा गाड़ी के कुछ पुर्ज़े...आधी अधूरी, पिचकी हुई , फटी हुई लाशें ..सामान...और खून के छींटे ...गर्म छींटे....
कुछ अपने ही जिस्म से अलग होते चीथड़ो को कुछ देर तक महसूस भी करते रहे ...और फिर मर गये....और कुछ अभागे अभी भी जिंदा है...जिंदगी भर मरने के लिए...
घर मे माँ पागला सी गयी है...बाप मोहल्ले की परचून वाले के यहाँ से पत्ती और बिस्कुट लेने गया है...उधार....
मंत्री जी आ रहें है...साथ मे कलेक्टर भी है ..घर मे कोई रो नही रहा.... इसलिए प्रेस वाले परेशान हैं ....मंत्री ने गैस का बहाना बना के चाय के लिए मना कर दिया ...रे बैन पहने...मीडीया की तरफ देखते हुए...कलेक्टर ने कुछ सामान निकाला और पूछा ये आपके बेटे का ही था ना...बाप ने काँपते हाथों से जैसे सामान हाथों मे लिया...फफक कर रो पड़ा ...पीछे से धीरे धीरे पूरा घर छाती पीटने लगा....पगली माँ भी....पत्रकारों ने तुरंत मोर्चा संभाल लिया....चमचमाते फ्लैशों के बीच ...बाप ने संभलते हुए पर्स देखा ...चाँदी की अंगूठी देखी जिस पर नग चड़ा हुआ था..थोड़ा याद किया ...ये वही अंगूठी थी जिसे पंडित ने भाग्य बढ़ाने के लिए पहनाया था...फिर याद आया इसके तो पैसे भी सुनार को अब तक नही दिए...तभी मंत्री जी का फोन बज गया...मुन्नी बदनाम रिंग टोन के साथ......फोन को कान पर सटा कर बेशर्मी से मंत्री ने परिवार को अलविदा कहा...फिर याद आया फोटो तो खिंचवाया ही नहीं...वो भी कर लिया..और फिर कोलेक्टर पीछे पीछे ....कान पर कोई बता गया मुआवज़े के लिए अगले हफ्ते दफ़्तर आ जाना ....जाते जाते कोई कह रहा था...एक महीने से पहले काम नहीं होगा ...क्यों..अरे राज्योत्सव चल रहा है यार...उत्तराखंड दस साल का हो गया ना....